भगवान जगन्नाथ रथ यात्राBhagwan jagannath rath yatra jagannath puri
भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा कब मनाते हैं
हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल आषाढ़ महीने में शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। रथ यात्रा उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर में होता है। भगवान जगन्नाथ का मंदिर चार धामों में से एक धाम है।
भगवान जगन्नाथ जी भाई बलभद्र जी बहन सुभद्रा जी का रथ
भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ यात्रा का आयोजन होता है। भगवान का विशाल रथ 10 दिनों के लिए यात्रा में निकलता है। सबसे आगे भगवान बलभद्र का रथ चलता है। इसे ताल ध्वज कहते हैं।बहन सुभद्रा का रथ मध्य में चलता है। दर्प दलन या पद्म रथ कहा जाता है। अंत में भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ चलता है। देवशयनी एकादशी को रथ यात्रा की समाप्ति होती है। यात्रा के पहले दिन भगवान गुंडिचा माता के मंदिर जाते हैं, कहा जाता है गुंडिचा मंदिर में स्थित देवी भगवान श्री कृष्ण की मौसी है। वे तीनों को अपने घर आने का निमंत्रण देती है।
भगवान जगन्नाथ जी का रथ पीले और लाल रंग के कपड़ों से बना है जिसमें 16 पहिए लगे हैं। बलभद्र जी का रथ हरे और लाल रंग का है। जिसमें 14 पहिए लगे हैं। सुभद्रा जी का रथ काले और लाल कपड़े का बना है। 12 पहिए लगे हैं। लकड़ी के बने इन रथों को भक्त रस्सियों से खींचते हैं।
वार्षिक स्नान अनुष्ठान
पौराणिक मान्यता के अनुसार रथ यात्रा के पूर्व स्नान यात्रा होती है। जेष्ठ माह के पूर्णिमा के दिन भगवान का जन्म दिवस माना जाता है। इसके लिए वार्षिक स्नान अनुष्ठान होता है। भगवान की मूर्तियों को मंदिर परिसर में मौजूद सूना कुआं से खींचे गए 108 घडों के पानी से भगवान को स्नान कराया जाता है। स्नान यात्रा के बाद भगवान की मूर्तियों को 15 दिनों के लिए सार्वजनिक दर्शन से दूर रखा जाता है। माना जाता है बहुत ज्यादा स्नान करवाने के कारण उन्हें बुखार आ जाता है। इस समय श्रद्धालु भगवान का दर्शन नहीं कर सकते हैं। 15 दिन विशेष कक्ष में भगवान समय बिताकर कक्ष से बाहर निकलते हैं। लोगों को दर्शन देते हैं इसके बाद भगवान भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर विराजमान होकर भ्रमण करने निकलते हैं।
लोगों में भगवान के रथ को खींचने की होड़ लगी रहती है। कहते हैं जो इस रथ को खींचता है, उसे मुक्ति मिल जाती है। सभी तरह के पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि सुभद्रा ने द्वारका दर्शन की इच्छा जताई तब भगवान ने सुभद्रा को रथ से भ्रमण करवाया।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें